Monday 13 January 2014

राजभर शासक शिवशरन का 12 वीं सदी-मझौली देवरिया में शासन

Leave a Comment
मझौली राज पर किसी भी वंश का स्‍थायी शासन नहीं रहा है । इस राज्‍य पर बार बार आक्रमण होते रहे हैं जो सबल पडता यहां का शासक बन जाता था । परन्‍तु राजभर शासकों का शासन मझौली राज पर समय समय पर उतार चढाव के साथ ज्‍यादा समय तक रहा है । सर्वप्रथम इस क्षेत्र से कुषाण शासकों को खदेडकर दूसरी सदी में नागभारशिवों (वर्तमान राजभर) ने यहां शासन किया । तदोपरान्‍त चौथी सदी में समुद्रगुप्‍त ने अपने दिग्विजय के समय भारशिवों को परास्‍त करके यहां अपनी सत्‍ता कायम की थी । परन्‍तु राजभर बैठे नहीं रहे । मौका पाकर पुन. राजभरों ने मझौली पर कब्‍जा कर लिया । 8 वीं सदी में राजभर शासक शिवविलास को हराकर राजा विश्‍वसेन ने अपनी सत्‍ता कायम की । इधर राजभरों को अपना राज्‍य चले जाने का मलाल कम नहीं हुआ । कई दशकों बाद राजभरों ने संगठित होकर यहां के राजा को परास्‍त करके इस राज्‍य पर पुन; कब्‍जा कर लिया । तबसे यहां राजभरों का शासन चलता आ रहा था । 12 0ीं सदी के प्रारम्‍भ में यहां पर राजभर शासक शिवशरन यहां के राजा हुए । उन्‍होंने अपनी सैन्‍य शक्ति के बल पर अपने राज्‍य का विस्‍तार किया ।
        अवध प्रान्‍त में 12 वीं सदी में जब जगह जगह मुस्लिम शासकों का शासन हुआ तो मुस्लिम शासकों ने सत्‍ता संघर्ष में राजभरों के कत्‍लेआम की घोषणा की । उस समय कुछ राजभर जान बचाने के लिए भागकर जंगलों का शरण लिए तो कुछ ने देश छोडकर अन्‍य देशों को पलायन कर लिया । राजभरों की शक्ति कमजोर पडती गई । उसी समय विशेन वंश के 40 वीं पीढी के राजा चक्रसेन उर्फ चक्रनारायण ने राजभर शासक शिवशरन के राज्‍य पर आक्रमण कर दिया और राजा शिवशरन को परास्‍त करके मझौली में अपना शासन कायम किया । इतिहासकार देवीसिंह माण्‍डवा ने राजा चक्रनारायण का भरगढा पर सत्‍ता वापस करने की घटना को इस प्रकार उल्‍लेख किया है , कृपया अवलोकन करें ---
        ’’विशेन वंशीय राजा चक्रनारायण ने भरों पर भारी विजय कर मध्‍यावली को अपना केन्‍द्र बनाया । इसी क्षेत्र का नाम आगे चलकर मझौली पडा । फिर यह राज्‍य उत्‍तरोत्‍तर बढकर नेपाल तक हो गया । ;;;;;;;मझौली के महाराज लाल खंगबहादुर मल्‍ल भी बहुत बडे विद्वान थे । वे इतिहास में रूचि लेते थे । उन्‍होंने विशेन वंश के इतिहास को संकलित कर पुस्‍तक ‘’ विशेन वाटिका’’ की रचना की । विशेन बाटिका में उस समय प्रचलित बातों के आधार पर बहुत सी बातें लिखी गई हैं जो पूर्णरूपेण ऐतिहासिक नहीं हैं । (पुस्‍तक- क्षत्रिय शाखाओं का इतिहास पृष्‍ठ 295, 296 लेखक श्री देवीसिंह माण्‍डवा) । इतिहासकार देवीसिंह माण्‍डवा े उपरोक्‍त विचारों से लगता है कि विशेन वंश की वंशावली और मझौली के शासकों को पराजित करके विशेन राजाओं का सत्‍तासीन होना । परन्‍तु पुस्‍तक में विजेता विशेन राजा के नाम िका उल्‍लेख करना तथा पराजित राजा के नाम का उल्‍लेख न करना ,इन उल्लिखित घटनाओं के कपोल कल्पित होने की तरु इशारा करत‍ी है । ऐसा लगता है कि पुस्‍तक विशेन वाटिका में सत्‍यांश पर ज्‍यादा ध्‍यान न देकर विशेन वंश के महिमा मण्‍डन पर ज्‍यादा ध्‍यान दिया गया है । यही वजह है कि इस पुस्‍तक में लिखी गई घटनाओं में पारदर्शिता नहीं है ।
      राजा चक्रनारायण के वंशजों का मझौली पर शासन चल ही रहा था कि मौका पाकर राजभरों ने पुन. मझौली राज पर कब्‍जा कर लिया । इतिहासकार श्री एम;बी; राजभर की पुस्‍तक नागभारशिव का इतिहास पृष्‍ठ 162 के अनुसार 17 वीं सदी तक सलेमपुर तथा मझौली राज में राजभरों का शासन था । अंग्रेजों के शासनकाल में अंग्रेजों के कृपापात्र विशेन वंश का मझौली में पुन; कब्‍जा हो गया जो आजतक चल रहा है । लेखक शमीम इकबाल के अनुसार --इतिहास में अपनी भूमिका के प्रति पर्याप्‍त स्‍थान नहीं पाने वाले इस राज (मझौली राज) का स्‍थापना काल 12 वीं सदी से 17 वीं सदी तक का समय इसके उत्‍कर्ष का समय माना जाता है । (समावारपत्र-सहारा पृष्‍ठ 12 ,शीर्षक मझौली राज, सम्‍वाददाता शमीम इकबाल) ,
        अत; उपरोक्‍त उल्‍लेख से स्‍पष्‍ट है कि मझौली में विशेनवंश का शासन 12 वीं सदी (1140 ईस्‍वी) के पहले तथा  17 वीं सदी के मध्‍य स्‍थायी नहीं रहा है । इस अवधि में राजभर शासकों का यहां शासन रहा है ।

0 comments:

Post a Comment