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Saturday, 8 August 2020

Is Bhar and Pasi Same? Is Rajbhar and Bhar Same? Is Bhar a Tribal Caste?

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According‌ ‌to‌ ‌Gazetter‌ ‌of‌ ‌Sultanpur‌ ‌published‌ ‌in‌ ‌1903‌ ‌after‌ ‌modifying‌ ‌all‌ ‌previous‌ ‌gazetters,‌ ‌it‌ ‌

has‌ ‌mentioned‌ ‌that‌ ‌Rajbhar‌ ‌Caste‌ ‌is‌ ‌a‌ ‌subclass‌ ‌of‌ ‌Bhar‌ ‌Caste.‌ ‌ ‌


Is‌ ‌Rajbhar‌ ‌and‌ ‌Bhar‌ ‌Same?‌ ‌

 ‌

Bhar‌ ‌caste‌ ‌has‌ ‌prefixed‌ ‌Raj‌ ‌in‌ ‌their‌ ‌surname‌ ‌to‌ ‌represent‌ ‌their‌ ‌royal‌ ‌history,‌ ‌although‌ ‌both‌ ‌are‌ ‌

same.‌ ‌Although‌ ‌at‌ ‌present,‌ ‌this‌ ‌community‌ ‌is‌ ‌addressed‌ ‌as‌ ‌Bhar‌ ‌community‌ ‌by‌ ‌all‌ ‌other‌ ‌

communities‌ ‌living‌ ‌surrounding‌ ‌them.‌ ‌ ‌

 ‌

Rajbhar‌ ‌caste‌ ‌in‌ ‌Uttar‌ ‌Pradesh,‌ ‌where‌ ‌I‌ ‌live‌ ‌never‌ ‌get‌ ‌OBC‌ ‌certificate‌ ‌as‌ ‌Rajbhar‌ ‌caste,‌ ‌instead‌ ‌

they‌ ‌are‌ ‌given‌ ‌a‌ ‌Bhar‌ ‌certificate‌ ‌by‌ ‌all‌ ‌the‌ ‌government‌ ‌authorities.‌ ‌

 ‌

 ‌

Is‌ ‌Bhar‌ ‌and‌ ‌Pasi‌ ‌Caste‌ ‌Same?‌ ‌

 ‌

No,‌  ‌Bhar‌ ‌and‌ ‌Pasi‌ ‌Caste‌ ‌are‌ ‌not‌ ‌the‌ ‌same,‌ ‌and‌ ‌it‌ ‌is‌ ‌clear‌ ‌from‌ ‌their‌ ‌social‌ ‌and‌ ‌cultural‌ ‌

differences.‌ ‌Few‌ ‌historians‌ ‌have‌ ‌written‌ ‌them‌ ‌as‌ ‌the‌ ‌same‌ ‌caste‌ ‌because‌ ‌of‌ ‌lack‌ ‌of‌ ‌resources‌ ‌

and‌ ‌ground‌ ‌knowledge.‌ ‌ ‌

 ‌

Cultural‌ ‌differences‌ ‌can‌ ‌be‌ ‌clearly‌ ‌seen‌ ‌between‌ ‌both‌ ‌castes‌ ‌at‌ ‌their‌ ‌native‌ ‌places.‌ ‌Bhar‌ ‌caste‌ ‌

never‌ ‌showed‌ ‌any‌ ‌relationship‌ ‌with‌ ‌Pasi‌ ‌caste‌ ‌whether‌ ‌it‌ ‌is‌ ‌marriage‌ ‌or‌ ‌any‌ ‌other‌ ‌kind‌ ‌of‌ ‌social‌ ‌

bounding.‌ ‌They‌ ‌always‌ ‌remain‌ ‌apart‌ ‌in‌ ‌the‌ ‌similar‌ ‌way‌ ‌like‌ ‌other‌ ‌social‌ ‌communities‌ ‌live‌ ‌apart.‌ ‌ ‌

 ‌

Before‌ ‌making‌ ‌such‌ ‌statements,‌ ‌anyone‌ ‌should‌ ‌must‌ ‌clear‌ ‌the‌ ‌ground‌ ‌situation‌ ‌by‌ ‌visiting‌ ‌their‌ ‌

native‌ ‌places.‌ ‌

 ‌

Pasi‌ ‌caste‌ ‌is‌ ‌known‌  ‌to‌ ‌climb‌ ‌and‌ ‌tap‌ ‌toddy‌ ‌(Taadi)‌ ‌from‌ ‌palm‌ ‌tree.‌ ‌They‌ ‌also‌ ‌rear‌ ‌pigs‌ ‌but‌ ‌Bhar‌ ‌

caste‌ ‌never‌ ‌allows‌ ‌to‌ ‌live‌ ‌a‌ ‌person‌ ‌in‌ ‌their‌ ‌community,‌ ‌who‌ ‌rear‌ ‌such‌ ‌animals.‌ ‌ ‌

Pasi‌ ‌caste‌ ‌is‌ ‌nowhere‌ ‌addressed‌ ‌in‌ ‌their‌ ‌society‌ ‌as‌ ‌bhar‌ ‌caste‌ ‌at‌ ‌their‌ ‌native‌ ‌places.‌ ‌

 ‌

Is‌ ‌Rajbhar‌ ‌a‌ ‌tribal‌ ‌caste?‌ ‌

 ‌

Rajbhar‌ ‌caste‌ ‌is‌ ‌not‌ ‌a‌ ‌tribal‌ ‌caste‌ ‌because‌ ‌their‌ ‌community‌ ‌does‌ ‌not‌ ‌live‌ ‌in‌ ‌tribal‌ ‌areas‌ ‌from‌ ‌

ancient‌ ‌era.‌ ‌They‌ ‌mainly‌ ‌live‌ ‌in‌ ‌the‌ ‌plains‌ ‌of‌ ‌northern‌ ‌and‌ ‌southern‌ ‌India.‌ ‌They‌ ‌were‌ ‌mainly‌ ‌

working‌ ‌as‌ ‌the‌ ‌kings‌ ‌and‌ ‌their‌ ‌courtier.‌ ‌They‌ ‌also‌ ‌fit‌ ‌in‌ ‌the‌ ‌army‌ ‌of‌ ‌their‌ ‌kingdom‌ ‌as‌ ‌commander.‌ ‌ ‌

After‌ ‌the‌ ‌arrival‌ ‌of‌ ‌Sultanate‌ ‌period,‌ ‌Bhar‌ ‌were‌ ‌completely‌ ‌destroyed‌ ‌and‌ ‌few‌ ‌of‌ ‌them‌ ‌escaped‌ ‌

from‌ ‌sultanate‌ ‌ruler‌ ‌and‌ ‌invaders‌ ‌in‌ ‌dense‌ ‌forests‌ ‌and‌ ‌mountains‌ ‌to‌ ‌save‌ ‌their‌ ‌families‌ ‌and‌ ‌

make‌ ‌further‌ ‌strategies.‌ ‌

 ‌

Why‌ ‌not‌ ‌it‌ ‌is‌ ‌a‌ ‌tribal‌ ‌caste?‌ ‌

 ‌

In‌ ‌general,‌ ‌a‌ ‌tribal‌ ‌caste‌ ‌is‌ ‌a‌ ‌habitat‌ ‌of‌ ‌forests‌ ‌or‌ ‌farthest‌ ‌areas,‌ ‌who‌ ‌do‌ ‌not‌ ‌have‌ ‌touch‌ ‌with‌ ‌

ongoing‌ ‌societies.‌ ‌But‌ ‌bhar‌ ‌caste‌ ‌does‌ ‌always‌ ‌have‌ ‌great‌ ‌culture‌ ‌and‌ ‌well‌ ‌developed‌ ‌society.‌ ‌ ‌

 ‌

Although‌ ‌after‌ ‌living‌ ‌in‌ ‌farthest‌ ‌areas,‌ ‌their‌ ‌educational‌ ‌and‌ ‌other‌ ‌social‌ ‌background‌ ‌started‌ ‌

weakening.‌ ‌ ‌

 ‌

But‌ ‌it‌ ‌cannot‌ ‌be‌ ‌addressed‌ ‌on‌ ‌this‌ ‌basis‌ ‌as‌ ‌a‌ ‌tribal‌ ‌caste‌ ‌because‌ ‌many‌ ‌other‌ ‌kings and their castes‌ ‌(like‌ Rajputs)‌ ‌also‌ ‌followed‌ ‌the‌ ‌same‌ ‌path‌ ‌but‌ ‌they‌ ‌never‌ ‌considered‌ ‌as‌ ‌a‌ ‌backward‌ ‌or‌ ‌tribal‌ ‌castes.‌ ‌ ‌

 ‌

 ‌

Why‌ ‌Bhar‌ ‌caste‌ ‌is‌ ‌living‌ ‌a‌ ‌backward‌ ‌life nowadays? ‌ ‌

 ‌

There‌ ‌are‌ ‌several‌ ‌reasons,‌ ‌among‌ ‌which‌ ‌main‌ ‌reasons‌ ‌are‌ ‌as‌ ‌follows:‌ ‌

 

·         Most‌ ‌people‌ ‌belonging‌ ‌to‌ ‌Bhar‌ ‌caste‌ ‌did‌ ‌not‌ ‌provide‌ ‌proper‌ ‌education‌ ‌to‌ ‌their‌ ‌children because of their current financial situation.

·         Most children study in government schools, where only formality of education is fulfilled.

·         Since their educational background never went fine, they never dare to achieve higher post in government or other services.

 

Are they still living backward life?

 

You will find huge awareness in this society the past decades. Thus, many have achieved good results but many are still in the transition phase of rising their values. It will take more than decades to take them in mainstream.

 

I will provide all the sources mentioned here in my another post, if you show genuine interest.

 

Thanks for giving your valuable time, please share your views through your comments.

 

 

 

 

 

 


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Monday, 13 January 2014

राजभर शासक शिवशरन का 12 वीं सदी-मझौली देवरिया में शासन

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मझौली राज पर किसी भी वंश का स्‍थायी शासन नहीं रहा है । इस राज्‍य पर बार बार आक्रमण होते रहे हैं जो सबल पडता यहां का शासक बन जाता था । परन्‍तु राजभर शासकों का शासन मझौली राज पर समय समय पर उतार चढाव के साथ ज्‍यादा समय तक रहा है । सर्वप्रथम इस क्षेत्र से कुषाण शासकों को खदेडकर दूसरी सदी में नागभारशिवों (वर्तमान राजभर) ने यहां शासन किया । तदोपरान्‍त चौथी सदी में समुद्रगुप्‍त ने अपने दिग्विजय के समय भारशिवों को परास्‍त करके यहां अपनी सत्‍ता कायम की थी । परन्‍तु राजभर बैठे नहीं रहे । मौका पाकर पुन. राजभरों ने मझौली पर कब्‍जा कर लिया । 8 वीं सदी में राजभर शासक शिवविलास को हराकर राजा विश्‍वसेन ने अपनी सत्‍ता कायम की । इधर राजभरों को अपना राज्‍य चले जाने का मलाल कम नहीं हुआ । कई दशकों बाद राजभरों ने संगठित होकर यहां के राजा को परास्‍त करके इस राज्‍य पर पुन; कब्‍जा कर लिया । तबसे यहां राजभरों का शासन चलता आ रहा था । 12 0ीं सदी के प्रारम्‍भ में यहां पर राजभर शासक शिवशरन यहां के राजा हुए । उन्‍होंने अपनी सैन्‍य शक्ति के बल पर अपने राज्‍य का विस्‍तार किया ।
        अवध प्रान्‍त में 12 वीं सदी में जब जगह जगह मुस्लिम शासकों का शासन हुआ तो मुस्लिम शासकों ने सत्‍ता संघर्ष में राजभरों के कत्‍लेआम की घोषणा की । उस समय कुछ राजभर जान बचाने के लिए भागकर जंगलों का शरण लिए तो कुछ ने देश छोडकर अन्‍य देशों को पलायन कर लिया । राजभरों की शक्ति कमजोर पडती गई । उसी समय विशेन वंश के 40 वीं पीढी के राजा चक्रसेन उर्फ चक्रनारायण ने राजभर शासक शिवशरन के राज्‍य पर आक्रमण कर दिया और राजा शिवशरन को परास्‍त करके मझौली में अपना शासन कायम किया । इतिहासकार देवीसिंह माण्‍डवा ने राजा चक्रनारायण का भरगढा पर सत्‍ता वापस करने की घटना को इस प्रकार उल्‍लेख किया है , कृपया अवलोकन करें ---
        ’’विशेन वंशीय राजा चक्रनारायण ने भरों पर भारी विजय कर मध्‍यावली को अपना केन्‍द्र बनाया । इसी क्षेत्र का नाम आगे चलकर मझौली पडा । फिर यह राज्‍य उत्‍तरोत्‍तर बढकर नेपाल तक हो गया । ;;;;;;;मझौली के महाराज लाल खंगबहादुर मल्‍ल भी बहुत बडे विद्वान थे । वे इतिहास में रूचि लेते थे । उन्‍होंने विशेन वंश के इतिहास को संकलित कर पुस्‍तक ‘’ विशेन वाटिका’’ की रचना की । विशेन बाटिका में उस समय प्रचलित बातों के आधार पर बहुत सी बातें लिखी गई हैं जो पूर्णरूपेण ऐतिहासिक नहीं हैं । (पुस्‍तक- क्षत्रिय शाखाओं का इतिहास पृष्‍ठ 295, 296 लेखक श्री देवीसिंह माण्‍डवा) । इतिहासकार देवीसिंह माण्‍डवा े उपरोक्‍त विचारों से लगता है कि विशेन वंश की वंशावली और मझौली के शासकों को पराजित करके विशेन राजाओं का सत्‍तासीन होना । परन्‍तु पुस्‍तक में विजेता विशेन राजा के नाम िका उल्‍लेख करना तथा पराजित राजा के नाम का उल्‍लेख न करना ,इन उल्लिखित घटनाओं के कपोल कल्पित होने की तरु इशारा करत‍ी है । ऐसा लगता है कि पुस्‍तक विशेन वाटिका में सत्‍यांश पर ज्‍यादा ध्‍यान न देकर विशेन वंश के महिमा मण्‍डन पर ज्‍यादा ध्‍यान दिया गया है । यही वजह है कि इस पुस्‍तक में लिखी गई घटनाओं में पारदर्शिता नहीं है ।
      राजा चक्रनारायण के वंशजों का मझौली पर शासन चल ही रहा था कि मौका पाकर राजभरों ने पुन. मझौली राज पर कब्‍जा कर लिया । इतिहासकार श्री एम;बी; राजभर की पुस्‍तक नागभारशिव का इतिहास पृष्‍ठ 162 के अनुसार 17 वीं सदी तक सलेमपुर तथा मझौली राज में राजभरों का शासन था । अंग्रेजों के शासनकाल में अंग्रेजों के कृपापात्र विशेन वंश का मझौली में पुन; कब्‍जा हो गया जो आजतक चल रहा है । लेखक शमीम इकबाल के अनुसार --इतिहास में अपनी भूमिका के प्रति पर्याप्‍त स्‍थान नहीं पाने वाले इस राज (मझौली राज) का स्‍थापना काल 12 वीं सदी से 17 वीं सदी तक का समय इसके उत्‍कर्ष का समय माना जाता है । (समावारपत्र-सहारा पृष्‍ठ 12 ,शीर्षक मझौली राज, सम्‍वाददाता शमीम इकबाल) ,
        अत; उपरोक्‍त उल्‍लेख से स्‍पष्‍ट है कि मझौली में विशेनवंश का शासन 12 वीं सदी (1140 ईस्‍वी) के पहले तथा  17 वीं सदी के मध्‍य स्‍थायी नहीं रहा है । इस अवधि में राजभर शासकों का यहां शासन रहा है ।
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Scheduled caste status and further nomadic tribe status for Rajbhar caste in SP portforlio

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Chief Minister Akhilesh Yadav on Saturday announced that his government had sent its recommendation for inclusion of 17 Most Backward Castes (MBC) in Scheduled Caste (SC) list, to the Centre on Friday.
Akhilesh also declared April 5 as public holiday to mark the birth anniversary of Maharaja Nishad Raj.
Gayatri Prajapati, Minister of State for Irrigation, had organised a sammelan of 17 MBCs at Samajwadi Party (SP) headquarters today. The function was attended by Akhilesh and Cabinet Minister Shivpal Yadav. Thousands of workers belonging to the 17 MBCs braved the incessant rain and attended the programme.
Prajapati, who represents Amethi seat, had made elaborate arrangements as several screens were set up both inside and outside the party office. "Prajapati has done a good job. He has converted a sammelan into a rally. He deserves credit for it. We will surely promote such persons from MBC communities," Akhilesh said.
"Though Netaji is not present in this sammelan, I knew he would have asked me the status about the letter. I inform you that my government has sent the letter yesterday only to the Centre for inclusion of 17 MBCs in SC list," Akhilesh added.
Further, on the demand of Nishad community, Akhilesh announced that April 5 will now be a public holiday to mark the birth anniversary of Maharaja Nishad Raj. "You have demanded it and I will fulfill it. It is necessary so that there is discussion among the people about the holiday and the great persons of your community becomes known to all," Akhilesh added.
Earlier, Mulayam Singh Yadav during his regime had passed the resolution in the state cabinet in February 2004 and had sent recommendation to the Centre for inclusion of these castes in SC list in December 2004. Later, Mulayam went ahead and issued a government order on 10 October 2005 giving SC benefits to these castes, which was, however, struck down by the High Court.
Mayawati after assuming charge recalled the recommendation of SP regime on 6 June 2007 and later rejected it.
The SP, in its poll manifesto, had assured to get these castes included in the SC list. The 17 different castes include Bhar, Rajbhar, Kahar, Kashyap, Kewat, Machua, Mallah, Kewat, Nishad, Kumhar, Prajapati, Dhiver, Bind, Biyar, Batham, Gond and Tairaha. Presently these communities are included in the OBC list. "The SP is always sympathetic towards you all. Netaji had raised the issue of caste census and he was successful in it. There are several sub-castes which are not even registered now," Akhilesh said.
Prajapati raised the issue of non-issuance of SC certificates to Gond caste in some districts. "Several District Magistrates (DMs) do not issue SC certificates. We need to take some measures," he said. On this Akhilesh assured that soon such things will be rectified as Gond community is already in the SC list.
He also said that the upcoming budget will have sufficient allocation for these communities. On the 22-point memorandum given to him, Akhilesh assured that all demands will be fulfilled after examination and assured that some of them — awas for fishermen commuity, land allottment to potters, nomadic tribe status to Rajbhars — will soon be fulfilled.
Shivpal, too, had described the association of SP with MBCs and assured all help. During the function, however, a group of Turaiha community members raised objections claiming that their community is already listed on serial number 66 in SC list. There is no point in recommending it, but the DM should be asked to issue SC certificates, they added.
Later, talking to mediapersons, Akhilesh blamed the Centre for price hike. "Only the central government is responsible for price hike. Just check how many times they have increased petrol prices. We have not raised the tax on petrol even once during 11 months. State governments are facing the brunt of poor policies of the Centre. Our party will raise it in parliament and the state governments should exert pressure on the Centre," he added.
Source: IndianExpress

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महान राजभरों की इतिहास में उपेक्षा

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  यदि भारत के इतिहास को खंगाला जाये तो मालूम पडेगा की जो समुदाय या जातीया विदेशी लुटेरे मुगलों से जमकर लोहा लेने में कामयाब रही, उनको रोकने में वीरता दिखाई , उन समुदाय और जातियों को मुग़ल राज आने बाद अछूत बनाकर यातना और मौत देने के साथ साथ उनके साथ सामाजिक और आर्थिक यातना भी दी गयी और इस काम के लिए मुगलों ने लालची व कायर धोखेबाज डरपोक हिन्दुओ को ही चुना.
इसके सबसे बड़े उदाहरण उत्तर प्रदेश की राजभर जाति है जिनके पास बहुत सारे राज्य थे. लेकिन सुहेलदेव राजभर के लडाको द्वारा पुरे भारत को तहसनहस करने वाली सलार गाजी की लुटेरी सेना को जो दस गुना बड़ी थे, आधे दिन की लड़ाई में काटकर ख़तम कर दिया और जब दुबारा से मुग़ल ताकतवर होकर भारत आये तो राजभरो की रियासतों को यही के कुछ लालची लोगो को मिलकर धोखे से मर मर कर ख़तम कर दिया और राजभर जातिया तितर वितर होकर पुरे क्षेत्र में फ़ैल गयी. वे जहा भी गए उनका अछूत बनाकर शोषण किया गया. हिन्दू बिरोधी सपा आपको यह बात नहीं जानने देगी. 
           यूपी में राजा सुहेलदेव राजभर द्वारा बहराइच में हिन्दू संहारक महमूद गजनी के भांजे “सालार गाजी” का सेना सहित वध कर दिया गया क्योकि कनक भवन मंदिर-अयोध्या को नष्ट करने केबाद सलार गाजी ने बहराइच का रुख किया और सुहेलदेव राजभर के दमदार लड़को ने अपने से दस गुना बड़ी मुग़ल लुटेरो को काट डाला और नेहरू चाचा के इतिहासकारों ने इस राजभर राजा का कही नाम तक नहीं उद्धृत किया है. और सलार गाजी जैसे पापी को हिन्दू के लिए पूजनीय प्रचारित करा दिया गया जिसने अयोध्या के कनक भवन मंदिर को ध्वस्त कर दिया था जिसका विवरण आज भी अयोध्या के कनक भवन मंदिर में लगी शिला लेख में दर्ज है. कितने हिन्दुओ को यह लेख दिखा है.
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राष्‍ट्रवीर सुहेलदेव राजभर की महान गाथा

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मथुरा नरेश महाराज वीरसेन भारशिव शिव के परम भक्‍त थे । वे स्‍वयं शिवस्‍वरूप थे, इसीलिए उनकी गणना एकादश रुद्रों में की गई एवं महापुराणों में उन्‍हें वीरभद्र के नाम से जाना गया । महाराज वीरसेन भारशिव शिवलिंग धारण करते थे । वे परमेश्‍वर शिव का अपमान नहीं सह सकते थे । जहां भी यज्ञादि शुभ कार्यों में महेश्‍वर शिव की अवहेलना की गई, वहां महाराज वीरसेन भारशिव ने अथवा उनके सेवकों ने उस यज्ञ का विध्‍वंश किया । प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्‍वंश किया जाना इसका प्रमाण है । उनकी इस प्रवृत्ति के कारण वैष्‍णव भारशिवों से गहरी शत्रुता रखने लगे ,और भारशिवों के विनाश की योजना बनाने लगे । वैष्‍णवों को जब भी अवसर मिला छल कपट के बल पर भारशिवों को नेस्‍तनाबूंद करने का प्रयास  करते रहे । इतना ही नहीं अपितु धरती काभार हटाने अर्था धरती से भारशिवों का विनाश करने के लिए विष्‍णु का आवाहन करते रहे ।
          शिवस्‍वरूप भगवान वीरसेन भारशिव चाहते थे कि सम्‍पूर्ण भारतीय समाज महेश्‍वर शिव को आत्‍मसात करे ,क्‍योंकि शिव ही एकमात्र ऐसे आराध्‍य हैं जो सभी प्रकार के भेदभाव से परे हैं । उनके दरबार में अमीर-गरीब, उंच-नीच, मित्र-शत्रु, विज्ञ-अल्‍पा, राजा-प्रजा, सुर-असुर, आदि का भेदभाव नहीं किया जाता । सब समान रूप से उनके दरबार में प्रवेश पाते हैं । महेश्‍वर शिव परम सन्‍यासी हैं ,दूसरे देवों के समान विलासी नहीं । आशुतोष हैं, सहज-आराध्‍य, सहज-सुलभ हैं । भगवान वीरसेन भारशिव ने समानता के प्रतीक महादेव शिव को भारत भूमि के हर क्षेत्र में प्रतिष्‍ठापित करने का प्रयास किया । हमारे देश के हर गांव में हर हर महादेव के दर्शन हो जायेंगे । शायद ही कोई ऐसा गांव मिले जहां शिवालय न हो । यह भगवान वीरसेन भारशिव की ही अनुकम्‍पा है ।
          भगवान वीरसेन भारशिव ने नागौद-नचना में शिवालय की स्‍थापना की एवं भारशिव कुलदेव के प्रतीक स्‍वरूप शिव मुखलिंग की स्‍थापना की । जबलपुर जिले के भेडाघाट पंचवटी में भी चतुर्मुख शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्‍ठा कराई । भेडाघाट का चतुर्मुख शिवलिंग विश्‍व में अपने प्रकार का अकेला मुखलिंग है 1 यह अद्वितीय है । इसी प्रकार भगवान वीरसेन भारशिव ने भारतवर्ष में बहुत से शिवालयों का निर्माण कराया जिन्‍हें बाद में वैष्‍णवों ने अपना बना लिया या यों कहें कि बलात कब्‍जा कर भारशिवों के नामपट़ट हटाकर अपने नामपट़ट लगवा लिए तथा उदर पोषण का जरिया बना लिया ।
           बहराइच के सोमनाथ मन्दिर का निर्माण भी संभवत; भगवान वीरसेन भारशिव ने ही कराया था । श्री मनीष मलहोत्रा का एक लेख ‘’बहराइच में सोमनाथ का दूसरा मन्दिर’’ जो कि दैनिक जागरण लखनउ संस्‍करण 13 जून 1998 में छपा था एवं राजभर मार्तण्‍ड के जुलाई5अगस्‍त-सितम्‍बर 1999 ईस्‍वी में साभार प्रकाशित किया गया था-में जो बहराइच जिला मुख्‍यालय से 28 किलोमीटर दूर शिवदत्‍त मार्ग पर लगभग साढे तीन किलोमीटर दूर छोर पर एक शिवलिंग भगवान शंकर की मान्‍यताओं से सम्‍बंधित प्राइज़ मूर्तियों का जो काल निर्धारण किया है ,वह मथुरा  नरेश महाराज वीरसेन भारशिव के शासनकाल से पूरी तरह मेल खाता है ।  अतएव, यह मन्दिर महाराज वीरसेन भारशिव का ही निर्माण कराया हुआ था, इसमें शंका की गुन्‍जाइश नहीं है ।
          श्री मनीष मलहोत्रा ने दिल्‍ली के एक संग्रहालय में काफी समय पूर्व औरंगजेब द्वारा लिखे गए आदेशपत्र के देखने की चर्चा की है, जिसमें औरंगजेब ने निर्देश दिए थे कि दक्षिण के कुछ मन्दिरों के  साथ दूसरा सोमनाथ का मन्दिर भी तोड दिया जाए, क्‍योंकि महमूद गजनवी और उसके भंजे सैयद सालार मसूद गाजी जैसे पूर्वजों की इच्‍छाएं अधूरी रह गई थीं । श्री मनीष मलहोत्रा ने लिखा है कि सैयद सालार दूसरे सोमनाथ के मन्दिर को लूटने या तोडने को यहां पहुचता उसके पहले भर-राजभर राणा सुहेलदेव ने उसे घाघरा के मैदान में अपनी सेना के साथ बढने से रोक दिया । भयंकर युद्ध हुआ और राजभर राणा सुहेलदेव ने सैयद सालार को घाघरा के म्मैदान में मार गिराया । श्री मनीष मलहोत्रा ने यह भी लिखा है कि उससे पहले ही दूसरे सोमनाथ का मन्दिर आराधकों द्वारा स्‍वयं नष्‍ट किया जा चुका ।
          मैं भी यहां स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं कि यदि दूसरे सोमनाथ का मन्दिर आराघकों द्वारा सन 1033 ईस्‍वी में स्‍वयं नष्‍ट किया जा चुका था  तब औरंगजेब जो कि सैयद सालार से कई सदियों बाद पैदा हुआ ,उसे दूसरे सोमनाथ के मन्दिर को तोडने का आदेश क्‍यों देना पडा ? सत्‍य तो यह है कि जब सैयद सालार दूसरे सोमनाथ के मन्दिर को लूटने अथवा तोडने को अपनी सेना के साथ बढा और राजभर राणा सुहेलदेव को इसकी भनक लगी तब उन्‍होंने सैयद सालार से युद्ध किया  और उसका बध कर दिया 1  इसके पूर्व दूसरे सोमनाथ मंदिर के आराधकों ने यहां की मूर्तियां और अकूत धन जहां का तहां छिपा दिया । राजभर राजा राणा सुहंलदेव की बहन का अपहरण भी सैयद सालार ने कर लिया था अतएव राजभर नरेश ने सैयद सालार मसूद गाजी का बध किया और दूसरे सोमनाथ मन्दिर की रक्षा की तथा बहन अम्‍बे को मुक्‍त कराया । उस काल खण्‍ड में जहां एक ओर अनेक भारतीय शासकों ने विदेशी लुटेरों की मदद की वहीं दूसरी ओर भारतीय सभ्‍यता एवं संस्‍कृति का ऐसा रखवाला भी मौजूद था जिसने सैयद सालार सहित उसकी सत्‍तर हजार फौज को मौत के घाट उतार दिया ।
          उसी श्रावस्‍ती सम्राट भारशिव दिवाकर राष्‍ट्रवीर सुहेलदेव राजभर के द्वारा एक विदेशी लुटेरे से लुटने एवं टूटने से बचाया गया बहराइच का दूसरा सोमनाथ का मन्दिर औरंगजेब के आदेश पर ढहा दिया गया  और औरंगजेब के समय के भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति के कथित कई रक्षक ,महान योद्धा जिनका गुणगान करते इतिहास अघाता नहीं चुपचाप देखते रहे ।
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Thursday, 12 December 2013

राजभर समेत 17 जातियों के आरक्षण हेतु संसद में हंगामा एवं स्थगन

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17 जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल कराने के लिए प्रदेश की दो धुर विरोधी समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने संसद को सिर पर उठा रखा है। सपा ने बुधवार को दोनों ही सदनों में इसी मुद्दे पर सरकार के जवाब की मांग को लेकर भारी हंगामा किया। राज्यसभा में तो सिर्फ इसी मुद्दे पर हंगामे के चलते कार्यवाही ही नहीं चल सकी। शोर-शराबे में बसपा भी पीछे नहीं रही।
बाद में, सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने संसद भवन परिसर में पत्रकारों से कहा कि उत्तर प्रदेश की कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धींवर, विंद, भर, राजभर, बाथम, तुरहा, गौड़, मांझी और मछुआ जातियों की स्थिति बहुत खराब है। उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल कराने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री व केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री को पत्र लिख चुके हैं। फिर भी केंद्र ने अब तक कुछ नहीं किया है। मुलायम के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि इन पिछड़ी 17 जातियों की समस्या की जड़ ही सपा है। उसके चलते ही ये जातियां उन सुविधाओं से भी वंचित हो गईं, जो उन्हें पहले मिलती थीं। बसपा ने अपनी पिछली सरकार में उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल कराने की पहल की थी और अब इस मुद्दे को संसद में उठा रही है।
इससे पहले, राज्यसभा में कार्यवाही पर सिर्फ यही मुद्दा हावी रहा। सदन की कार्यवाही शुरु होते ही सपा संसदीय दल के नेता प्रो. रामगोपाल यादव व मुख्य सचेतक नरेश अग्रवाल अपनी जगह पर खड़े होकर प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कराने के लिए सरकार से जवाब देने की मांग करने लगे। जबकि पार्टी के दूसरे सदस्य अरविंद कुमार सिंह, आलोक तिवारी, चौधरी मुनव्वर सलीम सभापति के आसन के पास जाकर नारेबाजी करने लगे। उसी समय बसपा के ब्रजेश पाठक, मुनकाद अली, अवतार सिंह करीमपुरी व दूसरे सदस्य सभापति के आसन के दूसरी तरफ आकर इसी मुद्दे पर नारेबाजी करने लगे। यही सिलसिला 11 बजे, 12 बजे और फिर दो बजे दोहराया गया। उसके बाद सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए ही स्थगित कर दी गई।


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Saturday, 14 September 2013

17 most backward castes of Uttar Pradesh will get scheduled caste status

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Uttar Pradesh Vidhan Sabha passed a resolution asking the Centre to include 17 most backward castes of the state into the list of Scheduled Castes (SC) category.

In the resolution presented by state Social Welfare Minister Avdhesh Prasad and passed by the voice vote, it was stated that in a detailed study by UP SC/ST research and training institute, these 17 castes have been found deserving to be included in the list of Scheduled Castes (SC).

According to the study, the castes- 'kahar', 'kashyap','kewat', 'mallah', 'nishad','kumhar', 'prajapati', 'dheevar','bind', 'bhar', 'rajbhar', 'dheemar', 'batham', 'turha', 'godia', 'manjhi' and 'machua' are deserving to be included in the list.

The Samajwadi Party government led by Mulayam Singh Yadav had also initiated a move for the inclusion of these castes in the list.

As per article 341 of the Constitution, Parliament has to pass a resolution for inclusion of any caste in the Scheduled Castes list and the state legislature can only make a recommendation in this regard.
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उत्तर प्रदेश में राजभर जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने को लेकर होती राजनीति

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जैसा कि सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार द्वारा हर स्तर पर व हर मामले में घनघोर जातिवादिता करने के कारण ख़ासकर अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) की ज्यादातर जातियों में छाये व्यापक आक्रोश व नाराज़गी की ओर से ध्यान हटाने के लिए सपा नये-नये शिगूफ़े छोड़कर लोगांे को साजि़श के तहत एक बार फिर वैसे ही धोखा देने व उनका भारी नुक़सान करने का प्रयास कर रही है जैसाकि भारी नुक़सान वर्ष 2003 से 2007 के दौरान पिछली सपा सरकार के कार्यकाल में इन वर्गों का किया गया था, जिस गहरी साजि़श के प्रति ख़ासकर इस समाज के लोगों को बहुत ही सजग व सतर्क रहने की ज़रूरत है। उल्लेखनीय है कि सपा की जातिवादी मानसिकता का जो वीभत्स रूप आज उत्तर प्रदेश सरकार में देखने को मिल रहा है, वह कोई नई बात नहीं है, बल्कि वर्ष 2003 से 2007 के बीच श्री मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में भी इसका क्रूर रूप देखने को मिला था जब एक सोची-समझी साजि़श के तहत् अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) की 12 जातियों, यथा 1. कहार, कश्यप 2. केवट, मल्लाह, निषाद 3. कुम्हार, प्रजापति 4. धीवर 5. बिन्द 6. भर, राजभर 7. धीमर 8. बाथम 9. तुरहा 10. गौंड 11. मांझी 12. मछुआ जातियों को एक अधिसूचना के माध्यम से अनुसूचित जाति वर्ग घोषित कर दिया था, जबकि यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आकर, संविधान की धारा 341 व 342 एवं माननीय न्यायालय के विभिन्न आदेशों के अन्तर्गत केन्द्र सरकार के माध्यम से संसद के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इसी कारण ही पिछली सपा सरकार के इस फैसले को ग़ैर-क़ानूनी व असंवैधानिक मानते हुये माननीय उच्च न्यायालय ने इसके लागू करने पर रोक लगा दी थी, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ था कि अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) की इन जातियों को इनके आरक्षण का लाभ ख़ासकर सरकारी नौकरी व शिक्षा में काफी लम्बे समय तक नहीं मिल पाया और फिर इस दौरान इनके आरक्षण का बचा लाभ एक जाति विशेष के लोग ही तब तक प्राप्त करते रहे। फिर जब अन्ततः मई सन् 2007 में बी.एस.पी. सरकार बनने पर अन्य पिछड़े वर्गों की उपरोक्त 12 जातियांे को दोबारा आरक्षण का लाभ पुनः बहाल करने की व्यवस्था की गयी और साथ ही दिनांक 04 मार्च, 2008 को पत्र लिखकर अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों को ओ.बी.सी. की सूची से हटाकर अनुसूचित जाति/जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी को सुश्री मायावती जी द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की हैसियत से पत्र लिखा गया, क्योंकि अनुच्छेद 341 के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा ही विभिन्न जातियों को सूची में शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) की जिन 16 जातियों को अनुसूचित जाति (एस.सी.) की सूची में शामिल करने की मांग की गयी थी उन जातियों के नाम इस प्रकार है:- 1. कहार, कश्यप 2. केवट, मल्लाह, निषाद 3. कुम्हार, प्रजापति 4. धीवर 5. बिन्द 6. भर, राजभर 7. धीमर 8. बाथम 9. तुरहा 10. गौंड़ 11. मांझी 12. मछुआ 13. लोनिया 14. नोनिया 15. लोनिया-चैहान 16. धनकर, क्योंकि उपर्युक्त वर्जित इन ओ.बी.सी. जातियों के लोगों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति आज़ादी के बाद के लम्बे वर्षों में कांग्रेस, बी.जे.पी. एवं अन्य विरोधी पार्टियों की सरकारों में अत्यन्त दयनीय बनी रही है। इतना ही नहीं, इन ओ.बी.सी. जातियों की स्थिति में कुछ बेहतरी लाने के उद्देश्य से बी.एस.पी. का यह प्रयास आज भी संसद के बाहर व संसद के भीतर लगातार जारी है। अभी-अभी इसी सप्ताह दिनांक 04 सितम्बर सन् 2013 को संसद में भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित विधेयक पर बोलते हुये भी बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन कुमारी मायावती जी ने केन्द्र सरकार से मांग की कि ओ.बी.सी. की 16 जातियों को एस.सी. अनुसूची में शामिल करने के लिए जो प्रस्ताव तत्कालीन बी.एस.पी. सरकार द्वारा भेजा हुआ है, उस लम्बित मामले पर तुरन्त कार्रवाई करते हुये उसे स्वीकार कर लेना चाहिये।
साथ ही, उनकी शुरू से ही यह मांग रही है कि इनका आरक्षण का अनुपात भी उसी क्रम में बढ़ जाना चाहिये, ताकि इन वर्गों के लोगांे को जिस संवैधानिक व्यवस्था के तहत उनकी सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है, वह बिना किसी रूकावट या बाधा के जारी रहे। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में बी.एस.पी. की अब तक की सभी चार सरकारों में सर्वसमाज के साथ-साथ ओ.बी.सी. वर्गांे का भी ख़ास ख़्याल रखा गया। माननीया बहन कुमारी मायावती जी के नेतृत्व में वर्ष 1995 में बनी   बी.एस.पी. की पहली सरकार में इन वर्गों के हित व कल्याण को मज़बूती प्रदान करने के लिए पहली बार अलग से ‘‘पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग‘‘ बनाया गया और पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफ़ारिश पर अन्य पिछड़े वर्ग की 21 मूल जातियों में 37 उपजाति/उपनाम को जोड़कर उन वर्गों के लोगांे का सरकारी नौकरी व शिक्षा आदि में आरक्षण का लाभ देकर इन्हें आगे बढ़ने का मौक़ा दिया गया। फिर वर्ष 1997 के दूसरे शासनकाल में अन्य बातों के अलावा उच्च प्रशिक्षण संस्थानों में इनके लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी तथा अन्य पिछड़े वर्ग की 13 और उप-जातियों को अतिरिक्त रूप में अनुसूचित-एक में सम्मिलित किया गया। तीसरे व चैथे शासनकाल में और भी ज़्यादा दूरगामी प्रभाव वाले काम अन्य पिछड़े वर्गों के हित व कल्याण के लिए किये गये, जबकि इसके विपरित सपा सरकार अब तक अपनी जातिवादी मानसिकता के तहत् काम करते हुये इन वर्गों के लोगांे के खि़लाफ नकारात्मक, भेदभावपूर्ण एवं उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाकर इनका,े इनके क़ानूनी हक़ से दूर रखती रही है, जिसके विरूद्ध सर्वसमाज के साथ-साथ इन वर्गों के लोगांे में व्यापक आक्रोश जग-ज़ाहिर है। और उनके इस प्रकार के अनेकों युग-परिवर्तनीय व ऐतिहासिक कामों के लिये सर्वसमाज में से ख़ासकर अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) वर्गों के लोग बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश एवं अपने देश में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी का तहेदिल से आभार प्रकट करते हैं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने अभी तक के चारों शासनकाल के दौरान सदियों से उपेक्षित इन ओ.बी.सी. वर्गों के लोगों की दयनीय सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति को बेहतर बनाकर समाज व देश की मुख्य धारा में लाने के लिये ईमानदारी से ठोस व बुनियादी काम किया है और साथ ही विरोधी पार्टियों की इन वर्गों के प्रति जातिवादी व विद्वेषपूर्ण नीति के तहत इन्हें नुक़ासान पहुँचाते हुये इन्हें आगे ना बढ़ने देने की साजि़श को भी नाकाम किया है।
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Friday, 14 June 2013

Suhaldev Rajbhar : The great warrior

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Raja Suhaldev Rajbhar was the great warrior. According to the Gazetteer(Shukla,2003:108), there is a great story of the war between Sayyed Salar Masood and Maharaja Suhaldev. Sayyad Massod was a nephew of Mahmood Ghazanavi. Massod was born in Ajmer in AD 1015. At the age of 16 he started his invasion of Hindustan. He travelled thousand multan to reachDelhi and from there to Meerut, Kannauj and Satrikh in Barabanki. Before arriving at Bahraich, which seems to have been desolated place at that time,he sent Saiyad Saif-ud-din and Mian Rajab,two kotwals(lieutenants) of his army there. A confederation of the nobles of Bahraich threatened the two lieutenants of Massod and tried to push back the army of Islam.

Masood then marched towards the region were at first daunted by the young warrior but gradually took heart and fought against him. But Massod defeated them time after time, until the arrival of Suhaldev turned the tide of victory. Masood was overthrown and slain with his entire follower in AD 1034. He was buried by his servants in Bahraich in the spot chosen by him, where his Dargah was built in AD 1035.

Suhaldev was the eldest son of the king of Sravasti, called Mordhwaj. According to the stories he had many names like Suhaldev,Sakardev,Suhirdadhwaj,Rai Suhrid Dev,Suhridil,Susaj,Shahardev,Sahardev,Suhahldev,Suhildev and Suheldev. But the contemporary print culture he is reffered to as Raja Suhaldev. This article is taken from Rajbharunity. It had spotted major role the great warrior.
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All About Rajbhar community and History of Rajbhar

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Rajbhar means "The best among the kings". According to British historian General Cunningham Bhar or Rajbhar is the branch of Bharg of mirzapur district. The Rajbhar are the descendants of Aryan who ruled north India long ago. Deoria, Mathura, Allahabad, Jaunpur, Faizabad, Mirzapur, Varanasi were ruled by Rajbhars for centuries. The town of Bhodohi (Formerly known as Bhardoi) was named after Bhar community.

Rajbhar caste resides in eastern Uttar Pradesh and other parts of this country and the world.They speak Bhojpuri, Awadhi and other regional languages where they are residing. In Uttar Pradesh Ballia, Azamgarh, Gorakhpur, Jaunpur, Ghazipur, Gonda, Varanasi, Deoria, Faizabad, Basti, Mau and Maharajganj are the districts where near about 2 million people of this community belongs. The other states where this caste also resides are Madhya Pradesh, Chhatisgarh, Bihar, West Bengal. The major cities where majority of this community  are living are Kolkata, Mumbai, Allahabad, New Delhi, Lucknow, Gorakhpur, Ballia, Azamgarh, Jaunpur, Varanasi, Deoria etc.

Subsequently they were deposed by Rajput and Muslim invaders by the end of eleventh century. It continued for next two hundred years. The last rajbhar ruler of Rae Bareli was killed by Ibrahim Shah (Jaunpur). After
losing their reign, they started farming, fishing, wood collection etc.

The gotra of Rajbhar caste is Bhardwaj (the guru of Lord Rama i.e. Maharshi Bhardwaj).
Rajbhar caste is also known as Bhar, Bhardwaj, Ray, Rai, Singh, Bharg, Kalhans, Nagbanshiya, Bharat, Bharpatwa etc.


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